Saturday, 3 August 2013

कमरे के लिए एक पंखा नहीं खरीद सके नेहरू

भारतीय राजनीति का इतिहास इतना विस्तृत है जिसकी कोई हद नहीं. स्वतंत्रता के सुनहरे पन्नों को पलटते जाइए तो कुछ ना कुछ ऐसे नए तथ्यों से अवगत होंगे जिसके बारे में आपने कभी सुना नहीं है. अंग्रेजों की गुलामी से भारत ने जब अपनी स्वतंत्रता का स्वाद चखा तो उसके सामने कई बड़ी मुश्किलें थीं लेकिन कहते हैं ना कि जहां चाह होती है वहां राह अपने आप नजर आती है. भले ही आज के नेतागण, जो पैसे और सत्ता की चकाचौंध की वजह से अंधे हो गए हैं, में यह चाहत कम ही नजर आती हो लेकिन पहले के नेता ऐसा नहीं थे. उनकी जीवनशैली बेहद सामान्य हुआ करती थी, क्योंकि वह अपनी जिम्मेदारी समझते थे और यह जानते थे कि जनता उन्हें अपना आदर्श मानती है और उनके ऊपर देश के विकास का भार है.


आन बान और शान का प्रतीक कहे जाने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru)की गिनती भी उन्हीं नेताओं में की जाती है, जिनका निजी जीवन सरल और चकाचौंध से अलग था. कुछ लोग भले ही इस बात को सही ना ठहराएं लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू जब 16 कमरों वाले त्रिमूर्ति भवन में रहते थे तब वहां पर भी उनका जीवन बेहद सादगी के साथ बीतता था. आप यकीन नहीं करेंगे कि देश के पहले प्रधानमंत्री को ए.सी. तक में सोना पसंद नहीं था और उनके कमरे में वही पुराना आवाज करने वाला पंखा रहा करता था.
गर्मियों के दिनों में भी जब वह भोजन के लिए तीन मूर्ति भवन आते थे तब आराम करने के लिए भवन में लगे सोफे पर बैठते थे. उस भवन में एयरकंडीशनर लगा था लेकिन वह सिर्फ वहां आने वाले मेहमानों के लिए ही चलाया जाता था. भोजन करने के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) अपने कमरे में चले जाते थे जहां सिर्फ छत पर टंगा एक पंखा और एक टेबल फैन हुआ करता. वो टेबल फैन इतनी आवाज करता था कि आसपास के कमरों तक उसकी आवाज जाती थी.
इन्दिरा गांधी की सचिव ऊषा भगत ने जब यह पंखा देखा तब उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू(Pandit Jawaharlal Nehru) की देखभाल करने वाले शख्स को इस पंखे को बदलने के लिए कहा. सेवादार ने ऊषा के कहे अनुसार उस पंखे को बदलवा दिया लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने जब अपने कमरे का पंखा बदला हुआ देखा वह तिलमिला उठे, वह इस हरकत पर बहुत क्रोधित हुए और उसी पुराने पंखे को वापस अपने कमरे में लगवाकर ही माने.
वर्ष 1956 में जब पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) सऊदी अरब की राजनायिक यात्रा पर गए तो वहां से वापस आते समय शाह सऊद ने उन्हें एक कैडलक कार और उनके साथ आए लोगों को स्विस घड़ियां उपहार में दीं. लेकिन नेहरू इतने महंगे-महंगे तोहफों को पाकर काफी परेशान हो गए थे, वह बिल्कुल नहीं चाहते थे कि यहां से इतने महंगे तोहफे लेकर लौटें. उनके साथ गए एक सदस्य ने उन्हें कहा कि “अगर शाह सऊद आपको कार नहीं देंगे तो उनके पास और है ही क्या आपको देने के लिए. वह आपको रेत का बोरा दें या तेल का पीपा.” इस बात पर नेहरू(Pandit Jawaharlal Nehru) जोर से हंसे और कार स्वीकार कर ली. भारत लौटते ही उन्होंने कैडलक कार राष्ट्रपति भवन के वीआईपी कार बेड़े में शामिल करवा दी और वर्ष 1956 में तोहफे में मिली यह कार आज भी राष्ट्रपति भवन के कार बेड़े में शामिल है.

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